- संगीत विशारद *
१७३ -झिंझोटी थाट -खमाज जाति-सम्पूर्ण वादी-ग, सम्वादी नि स्वर-नि कोमल वर्जित-कोई नहीं आरोह–सारेगम पधनिसां । अवरोह-सांनिधप मगरेसा । पकड़--धसा, रेम, ग, पमगरे सानिधप समय-रात्रि का दूसरा प्रहर यह खमाज थाट का आश्रय राग है। इस राग का विस्तार मन्द्र व मध्य सप्तक में विशेष रूप से रहता है। "स, रे मग," यह स्वर समुदाय राग वाचक है । ४६-श्रीराग आरोही ग ध बरज कर, रिध कोमल, मा तीख । रिप वादी संवादि ते, श्रीराग को को सीख ।। राग-श्री थाट-पूर्वी जाति-औडुव सम्पूर्ण वादी-रे, सम्वादी प स्वर-रे, ध कोमल, म तीव्र वर्जित-आरोह में ग, ध आरोह-सा, रे, मप, निसां । अवरोह–सां, निध, पमगरे, सा । पकड़-सा,रेरे, सा, प, मंगरे, गरे, रे, सा । समय-सायंकाल ( सूर्यास्त ) . यह बहुत गंभीर और लोकप्रिय राग है। रे - प की सङ्गति जब इस राग में करते हैं, तब यह बहुत मधुर मालुम होता है। “सा ग रे रे सा" यह स्वर समुदाय इसमें प्रिय मालुम देता है । ४७-ललित दो मध्यम, कोमल रिषभ, पंचम वर्जित जान | - मस वादी संवादि सों, ललितराग पहिचान ॥ राग-ललित वर्जित–प थाट-मारवा जाति-पाड़व वादी-म, सम्वादी सा स्वर-कोमल रे, दोनों म आरोह-निरेगम ममग मधसां अवरोह-रें निध मध ममग रे सा पकड़-निरेगम धर्मधर्मम ग समय-रात्रि का अन्तिम प्रहर