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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१६५

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  • सद्धीत विशारद *

इम राग में धर्म धर्म यह स्वर प्रयोग तथा निगमममग, यह स्वर समुदाय राग की विशेषता को व्यक्त करते हैं। कुछ प्रथों में इस राग में कोमल धैयत लिया है, किन्तु इयर तीव्र धैरत ही लिया जाता है। ४८ ---मियांमल्लार गा कोमल, सम्बाद मम, उतरत धैवत टार । दोउ निपाद के रूप ले, कहि मीयां मल्लार ॥ राग -मियामल्लार यर्जित-अवरोह में-च। बाट-काफी आरोह-रेमरेसा, मरे, प, निप, निसा | जाति-सम्पूर्ण, पाडव । अवरोह-सानिप, मप, गम, रेसा । वादी-म, मम्बाढी-सा पकड-रेमरंमा, निपमप, निधनिसाप, गमरेसा । स्वर-दोनों निपाट, ग कोमल ममय-मध्य रात्रि। कानड़ा और मल्लार के सयोग से यह राग बना है। इस राग में दोनों निपाद लगते हैं और कभी-कभी कुशल गायक एक के बाद दूसरा निपाद वरावर लेकर भी राग हानि मे इसे बचा लेते हैं। हम राग का पालाप चलम्बित लय में करके जब उसका विस्तार मन्द्र स्थान में होता है, तन बदा सुन्दर और कर्णप्रिय लगता है। कहते हैं कि यह राग मिया तानसेन के द्वारा आविष्कृत हुआ है। वादी सम्बादी के बारे में कुछ लोगों का मत बाढी मा, मम्बादी प के पक्ष में है, किन्तु भातसण्डे के अनुवायी अधिकतर म बाढी तथा सा मम्बादी ही मानते हैं। ४६-दरवारी कान्हड़ा गधनी कोमल जानिये, उतरत धैवत नाहिं । सुन दरवारीकान्हरा, रिप सम्वाद ताहिं ॥ राग-दरवारी काहडा वर्जित स्वर-अवरोह में ध थाट-आसारी आरोह-निसारेगरेसा मप यनिसा । जाति-सम्पूर्ण पाडव अवरोह-सा धनिप मप गु, मरेसा । वादी-रे, सम्वादी-प पकडलग, रेरे, सा, यु, निसा रे, सा । स्वर- ध नि कोमल समय-मध्यरात्रि। इम राग में गाधार दुर्वल है, अत गुणी लोग जलद और सीवी तानों में इस स्वर को विलकुल ही छोड़ देते हैं । गन्धार पर आन्दोलन इम राग की विचित्रता बढाता है। निप की मगत इममे नडी प्यारी लगती है। कहते हैं कि मिया तानमेन ने यह राग तैयार करके दरबार में अपनर बादशाह को सुनापर प्रसन्न किया था। यि चार इम प्रभार प्रगट किये हैं-