पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१७१

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साला मा-या विचार ताल-जिस आधार पर गायन वादन ओर नृत्य होता है, उसकी क्रिया नापने को ताल कहते हैं। जिस प्रकार भापा मे व्याकरण की आवश्यकता होती है उसी प्रकार सङ्गीत में ताल की आवश्यकता होती है। गाने-यजाने ओर नाचने की शोभा ताल से ही है । यथा तालस्तलप्रतिष्ठायामिति धातोर्धजि स्मृतिः । गीत वाद्य तथा नृत्य यतस्ताले प्रतिष्ठतम् ।। ताल शब्द 'तल' धातु (प्रतिष्ठा, स्थिरता ) मे वना है। तबला, पसावज इत्यादि ताल वाद्यों से जव गाने के समय को नापा जाता है, तो एक विशेष प्रकार का आनन्द प्राप्त होता है, वास्तव मे ताल सगोत की जान है। ताल पर ही सगीत की इमारत सडी मात्रा-मात्रा ताल का ही एक हिस्सा है, क्याकि मात्राओ के योग से ही समस्त तालों की रचना हुई है । एफसी लय या चाल मे गिनती गिनने को मात्रा कह सकते हैं । यदि घड़ी की एक सैकिंड को हम एक मात्रा मानले तो १६ सैकिंड मे तीनताल का ठेका वन जायगा, १२ सैकिंड मे एकताला का ठेसा बन जायगा । १० सैकिंड मे झपताल हो जायगी। इसी प्रकार वहुत सी ताले बनी हैं मुरय लय तीन प्रकार की होती हैं- (१) विलम्बितलय (२) मध्यलय (३) द्रुतलय (१) विलम्बितलय-जिस लय की चाल बहुत धीमी हो उसे विलम्बितलय कहते हैं । विलम्बितलय का अन्दाज, मध्यलय से यों लगाया जाता है-मान लीजिये एक मिनिट मे आपने एफसी चाल मे ६० तक गिनती गिनी, उसे अपनी मध्यलय मान लीजिये । इसके बाद इसी एक मिनट मे समान चाल से ३० तक गिनती गिनी तो इसे विलम्बितलय कहेंगे, अर्थात् ३० तक गिनती जो गिनी गई उसको लय, वनिस्वत ६० वाली गिनती के धीमी हो गई अर्थात् प्रत्येक गिनती मे कुछ देरी लगी। "विलम्ब" का अर्थ है देरी। (२) मध्यलय-जिस लय की चाल विलम्बित से तेज और द्रुतलय से कम हो उसे म यलय कहते हैं। यह लय वीच की होती है । वीच का ही अर्थ है "मध्य" । (३ ) द्रुतलय-जिस लय की चाल विलम्बितलय से चौगुनी या मध्यलय से दुगुनी हो उसे द्रुतलय कहेगे। उपर मध्यलय मे बताया गया था कि १ मिनिट मे सामान चाल मे ६ तक गिनती गिनकर मध्यलय कायम की गई है, अब यदि १ मिनट में - यि चार इम प्रसार प्रगट किये हैं।