पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१७८

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  • सङ्गीत विशारद *

१८७ hu S S S S S S S S s S र S s ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३६ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७ ना ती ito % te ४८ - - o म S S S न S S S S S र S S ho S ना ना . S ४६ ५० ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५६ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ धी ३ इस प्रकार ६४ सैकिन्ड में वे ही १६ अक्षर गाये गये, अर्थात मध्यलय नं० १ से इसकी गति चौथाई हुई, क्योंकि मध्यलय में हमने १६ सैकिन्ड में ही १६ अक्षर गा लिये थे और उन्हीं १६ अक्षरों को गाने में यहां चौगुना समय लग गया, इसलिये हमारी लय की गति चौथाई हो गई। इसे ही अति विलम्बित लय कहेंगे। यह तो लय को घटाने या विलम्बित करने का गणित हुआ, अब आगे लय को बढ़ाने का हिसाब बताया जाता है:- (४) दुगुनलय (द्रुतलय) इसकी चाल नं० १ वाली मध्यलय से ठीक दुगुनी होगी, इसलिये इसे दुगुन कहेंगे और चूँकि इसकी चाल में पहिले की अपेक्षा तेजी है, इसलिये इसे द्रुतलय भी कहते है । द्रुत का अर्थ है जल्द या तेजी । द्रुतलय को इस प्रकार लिपिबद्ध करेंगे:- वर मन हर - जय जय गिर धर नट १ 3 ७ ८ ४ ६ नाधी धीना नाधी धीना नाती तीना नाधी धीना X o ३ पाठकों को मालुम ही है कि मध्यलय के उपरोक्त १६ अक्षरों को १६ सैकिन्ड में गाया गया था, अब वे ही १६ अक्षर ८ सैकिन्ड में गा लिये, अतः यह हुई दुगुन लय । क्योंकि १६:२८ (५) तिगुनलय इस लय में मध्यलय से तिगुनी चाल हो जायगी, अर्थात अब उन्हीं १६ अक्षरों को गाने में मध्यलय की अपेक्षा एक तिहाई समय लगेगाः- यगिरि मनह र,जय जयज धरन टवर १ नाधीधी २ ३ नानाधी धीनाना तीतीना नाधीधी ५३, नाना L- x o X ३ नोट-"जयजय गिरधर नटवर मनह" इन १५ अक्षरों को गाने में ५ सैकिंड लगे और अन्तिम 'र' अक्षर में 3 सैकिंड लगी।