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- सगीत विशारद *
मुरय योल-ता-त-दी-यु-ना-धा-इ-ध्धे-दी-ग-रिपरी-में-म । पाश्रित बोल-रा-क-ग-गण-यु-पी-ला-थेई-का-को-टी-थर्र। तानपूरा. गायों के लिये तानपूरा ( तम्यूरा ) एक अत्यन्त महत्वपूर्ण तार वाय है। इसमें स्मिी गाने को गत नहीं निकलती, केवल स्वर देने के लिये ही इसका प्रयोग किया जाता है । गायक अपने गले के धर्मानुसार इममें अपना स्वर कायम कर लेते हैं और फिर इसकी झकार के सहारे उनका गायन चलता रहता है। अंग वर्णन , (१) तुम्बा--नीचे मे गोल और अपर कुछ चपटा होता है। इसके अन्दर पोल होती है, जिसके कारण स्वर गूंजते हैं। { २) ताली-तुभ्ये के ऊपर का भाग, जिस पर निज लगा रहता है। (३) त्रिज-धुर्च या घोडी भी इसी को कहते हैं, इसके ऊपर सानपूरा के चारों तार डटे रहते हैं। (४) डाँड--तुम्चे में जुटी हुई लकडी की पोली उडी, इसमें [टियाँ लगी रहती हैं तथा तार इसके ऊपर निचे रहते हैं (५) लगोट-तुम्वे को पेंटी में १ कोल लगी रहती है, इससे तानपूरा के चारों तार आरम्भ होकर चूटियों तक जाते हैं। (६) अटी-सूंटियो की ओर डॉड पर हड्डी की २ पट्टिया लगी होती हैं जिनमें मे १ के ऊपर होकर तार जाते हैं, वह अटी कहलाती है। (७) तारगहन- दूसरी पट्टी जो अटी के बराबर होती है, उसमे ४ सूराम होते हैं जिनमे मे होकर चारो तार सूटियों तक जाते हैं, इमे तारगहन कहते हैं । (८) गुलू-जिस स्थान पर तुम्बा और डाँड जुडे रहते हैं, इसे गुल या गुल कहा जाता है। (8) सुटियाँ--अटी व तारगहन के आगे लकड़ी की ४ कुजिया लगी होती हैं जिनमें तानपूरे के चारों तार बधे रहते हैं, इन्हें खटियाँ कहते हैं । (१०) मनका--ब्रिज और लगोट के बीच में तार जिन मोतियों में पिरोये होते हैं उन्हें मनका कहते हैं। इनकी सहायता से तारों में प्रावश्यकतानुसार थोडा सा उतार-चढाव करके स्वर मिलाये जाते हैं 1 मतामा ३ ॥