पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • सङ्गीत विशारद *

२१३ (१२) सूत--ब्रिज और तारों के बीच में धागे का टुकड़ा दबाया जाता है, इसे उचित स्थान पर लगाने से तानपूरे की झनकार खुली हुई और सुन्दर निकलती है । वास्तव में यह धागे ब्रिज की सतह को ठीक करने के लिये होते हैं, जिसके लिये गायक बहुधा ऐसा कहते हैं कि तानपूरे की जवारी खुली है। यहां पर जवारी का अर्थ ब्रिज की सतह तार मिलाना तानपूरे में ४ तार होते हैं, इनमें से पहला तार मन्द्र सप्तक के पंचम (प) में, बीच के दोनों तार ( जोड़ी के तार ) मध्य षडज (स) में और चौथा तार मन्द्र सप्तक के षडज (स) में मिलाया जाता है । इस प्रकार तानपूरे के चारों तार प स स स इन स्वरों में मिलाये जाते हैं। जिन रागों में पंचम वर्जित होता है (जैसे ललित) उसमें पंचम वाला तार मध्यम से मिलाते हैं। तानपूरे के प स स यह तीनों तार पक्के लोहे ( स्टील ) के होते हैं और चौथा तार (स) पीतल का होता है। किसी-किसी तम्बूरे में पहला तार भी पीतल का होता है, जिसे मर्दानी या भारी आवाज़ के लिये लगाते हैं, किन्तु जनानी या ऊँचे स्वर की आवाज़ के लिये लोहे का ही ठीक रहता है । तानपूरा छेड़ना तानपूरा बजाने को तानपूरा 'छेड़ना' कहा जाता है । चारों तारों को दाहिने हाथ की पहिली या दूसरी अँगुली से छेड़ते हैं। चारों तार एक साथ नहीं छेड़े जाते बल्कि बारी- बारी से एक-एक तार छेड़ा जाता है। तानपूरे की बैठक विभिन्न गायकों के अलग-अलग ढङ्ग होते हैं। कोई एक घुटना नीचा और एक घुटना कुछ ऊँचा करके बैठकर तानपूरे को छेड़ते हैं, कोई तानपूरे को जमीन पर लिटाकर छेड़ते हैं । अनेक बड़े-बड़े गायक ऐसे हैं जो स्वयं गाते हैं और तानपूरा उनका शार्गिद या अन्य कोई व्यक्ति छेड़ता रहता है। इससे उन्हें गाते समय अपने भाव व्यक्त करने में सहायता मिलती है। वायोलिन (बेला) वायोलिन ( Violin ) या बेला एक विदेशी वाद्य है । गज से बजने वाले समस्त वाद्यों में आजकल इसे प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखा जाता है। इस यन्त्र की उत्पत्ति और आविष्कार के बारे में विभिन्न मत पाये जाते हैं। जो लोग इसे विदेशी वाद्य मानते हैं उनके मतानुसार इसका आविष्कार यूरोप में १६ वीं शताब्दी के मध्य में हआ और तभी से यह प्रचलित है।