- संगीत विशारद *
२१५ के बाल तनते हैं या ढीले होते हैं । (४) नट ( Nut ) इसमें बाल फंसे रहते हैं और जब पेच घुमाया जाता है तो यह सरकने लगता है, (५) हेड-यह 'बौ' का अन्तिम सिरा है । रेज़न ( Resins) यह एक प्रकार का बिरोज़ा होता है, इस पर बो-(गज़ ) के बाल घिसकर तब बेला बजाते हैं, इससे आवाज स्पष्ट और सुन्दर निकलती है । बेला के ४ तार और उन्हें मिलाने की पद्धति वेला में कुल चार तार होते हैं जो क्रमशः G D A E कहलाते हैं, इनको मिलाने के ढङ्ग कई प्रकार के हैं। प्रथम प्रकार- -प सा प सां इस प्रकार मिलाते हैं यानी मन्द्र सप्तक का पंचम, मध्य सप्तक का षडज, मध्य सप्तक का पंचम और तार सप्तक का पडज । दूसरा प्रकार -सा प सा प इस तरह मिलाते है यानी पहिले दोनों मन्द्र सप्तक के षडज पंचम में और बाकी २ मध्य सप्तक के षडज पंचम मे । तीसरा प्रकार—म सा प रें इस प्रकार मिलाते हैं। भारतवर्ष में अधिकतर यह तीसरा प्रकार ही प्रचलित है। इसराज 'इसराज' एक प्रकार से सितार और सारंगी का ही रूपान्तर है। इसका ऊपरी भाग सितार से मिलता है और नीचे का भाग सारंगी के समान होता है। इसराज को दिलरुबा भी कहते हैं । यद्यपि इसकी शक्ल में थोड़ा सा अन्तर होता है किन्तु बजाने का ढङ्ग एक सा ही होता है । इसीलिये इसराज और दिलरुबा पृथक साज नहीं माने जाते । के इसराज मुख्य अङ्ग (१) तूंबा-(खाल से मढ़ा हुआ होता है ) इसके ऊपर घोड़ी या ब्रिज लगा रहता है। (२) लंगोट- -तार बांधने की कील होती है। (३) डांड-इसमें परदे बंधे रहते हैं। (४) घुर्च-खाल से मढ़ी हुई तबली के ऊपर का हड्डी का टुकड़ा जिस के ऊपर तार रहते हैं। इसे घोड़ी या ब्रिज भी कहते है । (५) अटी-सिरे की पट्टी, जिस पर होकर तार गहन के भीतर से खूटियों तक जाते हैं। (६) खूटियां--तारों को बांधने और कसने के लिये होती हैं।