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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२०१

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  • सङ्गीत विशारद

इसराज के ४ तार बाज का तार-यह मन्द मप्तक के मध्यम (म) में मिलाया जाता है। दूसरा व तीमरा तार-यह टोना तार मन्द्र सप्तक के पडज (स) में मिलाये जाते हैं, इन्हें जोडी के तार कहते हैं। 'मन्द्र मानक के पचम (प) में मिलता है, इस प्रकार इसराज के चारों तार म स म प में मिलाये जाते हैं, कोई-कोई कलाकार म स प स या म म प प इस प्रकार भी मिलाते हैं। इनके अतिरिक्त इमराज में तरस के तार और होते हैं, जिन्हें भिन्न-भिन्न रागों के अनुसार मिला लिया जाता है। चौथा तार- इसराज के परदे ध इसराज मे १६ परदे होते हैं, जोकि मितार की भाति पीतल या स्टील के बने हुए होते हैं। यह परदे निम्नलिखित स्वरा में होते हैं - में व नि नि सा रे ग म में प नि सा रे ग ३ ४ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ सितार की भाति इमराज मे कोमल स्वर बनाने के लिये परदों को सिसकाने की आवश्यकता नहीं पडती। कोमल स्वरों के स्थान पर अंगुली रस देने से ही काम चल 3 ६ जाता है। । इमराज बजाने में वाये हाथ की तर्जनी और मध्यमा अर्थात् पहली व दूसरी अंगुलिया काम देती हैं । गज को दाहिने हाथ से पकडते हैं। इमराज को पाये कन्धे के सहारे रसकर बजाना चाहिये । प्रारम्भ में गज धीरे-धीरे चलाना चाहिये तथा गज चलाते समय तार को अधिक जोर से नहीं दवाना चाहिये । पहिले स्वर सावन का अभ्यास हो जाने पर गर्ने निकालने की चेष्टा करनी चाहिए। वांसुरी यह भारतवर्ष का अति प्राचीन फूक का वाद्य है। भगवान कृष्ण ने अपने अधरों में लगाकर इसे अमरत्व प्रदान कर दिया है। आजकल बासुरी कई प्रकार की मिलती हैं, किन्तु हम यहा पर उसी का विवरण दे रहे हैं, जिसमें ६ सूरास होते हैं और अग्रेजी ढग पर उसकी ट्यून की हुई होती है । यद्यपि देशी बासुरी भी काफी प्रचलित हैं, किन्तु उसे वासुरी के कुशल वादक हो पहिचान सकते हैं कि इसकी ट्यून ठीक है या नहीं। बहुत से कलाकार यास की बासुरी अपने