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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२१३

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  • मनीत विशारद *

अब्दुल करीम खां सा साहेव अब्दुलकरीम या किराना के निवासी थे। इनके घराने में प्रसिद्ध गायक, तन्तकार व सारङ्गी-वादक हुए हैं । इन्होंने अपने पिता कालेया व चाचा अब्दुल्लाग्या मे सद्गीत शिक्षा प्राप्त की । यह बचपन में ही बहुत अच्छा गाने लगे थे । कहा जाता है कि पहली चार जन इन्हें एक सङ्गीत-महफिल में पेश किया गया, तन इनकी उम चल ६ वर्ष की थी । पन्द्रहले वर्ष में प्रवेश करते-करते इन्होंने सगीत कला में इतनी उन्नति करली कि आपको तत्कालीन बडोदी नरेश ने अपने यहा दरवार गायक नियुक्त कर लिया। बडौदा में ३ वर्ष तक रहने के पश्चात् १६०२ ई० में प्रथम बार आप बम्बई आये और फिर मिरज गये। मधुर और सुरीली आवाज एर हृदयग्राही गायकी के कारण दिनोंदिन इनकी लोकप्रियता बढती गई। सन् १९१३ के लगभग पूना में आपने आर्य मगीत विद्यालय की स्थापना की। विविध सगीत जल्सी के द्वारा धन इकट्ठा करके आप इस विद्यालय को चलाते थे। गरीन विद्यार्थियों का सभी खर्च विद्यालय उठाता था। इसी विद्यालय की एक शापा १६१७ ई० में या साइन ने वम्बई में स्थापित की और स्वय तीन वर्ष तक वम्बई में आपको रहना पडा । इन दिनों अापने एक कुत्ते को बड़े विचित्र ढग मे स्वर देने के लिये सिसा लिया था, वम्बई में अब भी ऐसे व्यक्ति मौजूद हैं, जिन्होंने अमरोली हाउस बम्बई के जल्से में इस कुत्ते को स्वर देते हुए सुना था । कई कारणों मे सन् १९०० में यह विद्यालय उन्हें बन्द कर देना पडा ओर फिर या साहन मिरज जाकर बस गये और अन्त तक वहीं रहे । ग्मा माहव गोवरहारी वाणी की गायकी गाते थे। महाराष्ट्र मे मींड और कण युक्त गायकी के प्रसार का श्रेय सा माहन को ही है। इनके अलापो में अपडता एव एक प्रवाह सा प्रतीत होता है । मुरीलेपन के कारण आपका सगीत अन्त करण को स्पर्श करने की क्षमता रमता था। 'पिया बिन नाही आवत चैन' आपकी यह ठुमरी बहुत प्रसिद्व हुई। इसे सुनने के लिये कला मर्मन विशेप रूप से फर्माइश किया करते थे । यद्यपि श्राप शरीर से कमजोर थे, फिन्तु आपका हृदय वडा विशाल और उदार था। आपका स्वभाव अत्यन्त शान्त और मरस था, ओर एक फकीरी वृत्ति के गायक थे। या साह्य की शिष्य परम्परा बहुत विशाल है। प्रसिद्ध गायिका हीरावाई बडौदेकर ने सा साहव से ही किराना घराने की गायकी सीसी है। इनके अतिरिक्त सवाई गन्धर्व, रौशन आरा वेगम आदि अनेक शिष्य एव शिष्याओं द्वारा आपका नाम रौशन होरहा है। एक बार वार्पिक उर्स के अवसर पर आप मिरज आये थे। कुछ लोगों के आग्रह वश एक जत्से में वहा से मद्रास जाना पडा, वहा पर आपका एक सङ्गीत कार्यक्रम में गायन इतना सफल रहा कि उपस्थित जनता ने आपकी भूरि-भूरि प्रशमा की। फिर एक सस्था की सहायतार्थ जल्से करने के लिये वहा मे पाडचेरी जाने का निश्चय हुआ। इस यात्रा मे ही सा साहव की तवियत मराब हो गई और रात्रि के ११ वजे सिंगपोयमकोलम स्टेशन पर वे उतर गये । वेकली वढती गई, कुछ देर इधर उवर टहलने के बाद वे बिस्तर पर बैठ गये। नमाज पढ़ी और फिर दर्वारी कान्दड़ा के स्वरों में सुदा की इबादत करने लगे। इस प्रकार गाते-गाते २७ अस्ट्यर सन् १९१७ ई० को श्राप हमेशा के लिये उसी विस्तर पर लेट गये मिया की मार, मिना