पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२४

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  • सङ्गीत विशारद *

२३ - ताले-झूमरा, आड़ा चौताला, सूलफाक, पश्तो, फरोदस्त, सवारी इत्यादि । , वाद्य-सितार, तबला। गोपाल नायक ने भी कुछ रागों का भी आविष्कार किया । जिनमें पीलू, बडहंस सारंग और विरम् उल्लेखनीय है । " १५ वीं शताब्दी में लोचन कवि ने हिन्दुस्थानी सङ्गीत पद्धति पर ... एक प्रसिद्ध ग्रन्थ 'राग तरंगिणी' लिखा, कुछ लेखक लोचन का समय तरंगिणी । १२ वीं शताब्दी बताते हैं, किन्तु लोचन कवि ने अपने ग्रंथ में जयदेव , और विद्यापति के उद्धरण दिये हैं ये दोनों शास्त्रकार क्रमशः १२ वीं और १४ वीं शताब्दी के हैं अतः लोचन का समय इस हिसाब से १२ वीं शताब्दी ठीक नहीं बैठता। इसमें प्राचीन राग-रागनी पद्धति को छोड़कर थाट पद्धति अपनाई गई है इन्होंने सभी जन्य रागों को १२ जनक मेलों ( थाटों) मे विभाजित किया है, अर्थात् कुल १२ थाट मानकर उनसे अनेक राग उत्पन्न किये हैं। अपना शुद्ध थाट इन्होंने वर्तमान काफ़ी थाट के समान माना है। राग तरंगिणी के अधिकांश भाग मे विद्यापति के गीतों पर विवेचन है। १४५६-१४७७ ई० के लगभग विजयनगर के राजा के दरबार में कल्लिनाथ द्वारा रत्नाकर की टीका सङ्गीत के सुप्रसिद्ध पंडित कल्लिनाथ थे। इन्होंने शाङ्ग देव कृत सङ्गीत रत्नाकर की टीका विस्तृत रूप से लिखी। यह टीका यद्यपि संस्कृत भाषा में ही थी तथापि उसके द्वारा अनेक सङ्गीत शास्त्रकारों ने यथोचित लाभ उठाया । सुलतान हुसेन पन्द्रहवीं शताब्दी में ( १४५८-१४६६ ई० ) जौनपुर के बादशाह सुलतान हुसेन शर्की सङ्गीत कला के अत्यन्त प्रेमी हुए हैं। शर्की ..mm इन्होंने ख्याल गायकी ( कलावन्ती ख्याल ) का आविष्कार किया एवं अनेक नवीन रागों की रचना की। जैसे, जौनपुरी तोड़ी, सिन्धु-भैरवी, रसूली तोड़ी १२ प्रकार के श्याम, जौनपुरी, सिन्दूरा इत्यादि । इसी समय अर्थात् १४८५-१५३३ ई० के बीच उत्तरी भारत में भक्ति आंदोलन ने जोर पकड़ा। भजन कीर्तन के रूप में सङ्गीत का जगह-जगह उपयोग होने लगा। साथ ही साथ बंगाल में चैतन्य महाप्रभु एवं अन्य भगवद्भक्तों द्वारा संकीर्तन का प्रचार हुआ, जिसके द्वारा सङ्गीत को भी यथेष्ट बल प्राप्त हुआ। है रामामात्य है सन् १५५० ई० के लगभग कर्नाटकी सङ्गीत का एक प्रसिद्ध है ग्रन्थ "स्वरमेल कलानिधि" रामामात्य द्वारा लिखा गया। जिसमे कृत स्वासलाई बहुत से रागों का वर्णन दिया गया है। यद्यपि उत्तर भारत की mom सङ्गीत पद्धति से इस ग्रन्थ का सीधा सम्बन्ध नहीं है तथापि इसका अध्ययन सङ्गीत जिज्ञासुओं के लिये अब भी आवश्यक समझा जाता है। प्रसन्नता की %3D + ++ H +++++++++++++4 +++ S %3D + + +++ ++++ ++++ + ++++ + Awaruw