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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२५

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  • सङ्गीत विशारद *

- Mod का समय तानसेन है सोलहवीं शताब्दी (१५५६-१६०५ ई.) मे मङ्गीत की विशेष यावर है उन्नति हुइ, यह बादशाह अकबर का समय था । अकवर सगीत के विशेष प्रेमी थे, इनके दरवार मे ३६ मङ्गीतजये। जिनमे प्रसिद्व सद्गीतन तानसेन, www.minचैजूवावरा, रामदास, वानरग सा के नाम विशेष उल्लेखनीय है । इसमे पहिले तानमेन राजा रामचन्द्र के यहा रहते थे, इनके मगीत की प्रशमा सुनकर अफवर ने तानमेन को अपने दरवार में प्रधान गायक और है के रूप में रस्सा । कहा जाता है कि तानमेन और वैजू बावरे की मगीत है जवारा है Y.mmim3 प्रतियोगिता भी एक बार हुई। तानमेन ने कुछ रागी का आविष्कार भी मिया, जिनमें दरबारी कान्हरा, मिया की सारग, मिया की मल्हार इत्यादि रागों के नाम हैं। तानसेन के सङ्गीत मे प्रभावित होकर इनके अनेक शिष्य भी होगये ये, बाद में यह शिप्य वर्ग दो भागों म वॅटगया -(१) रवाविये, जो तानमेन द्वारा आविष्कृत रवाव बजाते थे और (२) बीनसार जा वीणा बजाते थे। बीनकारों के प्रतिनिधि रामपुर के वजीर सा तथा रवारियों के प्रतिनिधि मोहम्मद अली या रामपुर रियासत वाले माने जाते थे। है अस्वर के ममय में ही स्वामी हरिदास वृदावन के एक प्रसिद्ध सगीतज्ञ स्वामी । महात्मा हुए हैं। इनका जन्म सम्बत् १५६६ भाद्रपद शुला (सन् १५१२ ई० ) में हुआ, तानसेन इन्हीं के शिष्य थे । स्वामी जी के शिष्यों द्वाग सङ्गीत का प्रचार अनेक नगरों मे भली प्रकार हुआ। कहा जाता है कि स्वामी हरिदास जी अपने समय के सर्वश्रेष्ठ सङ्गीतज्ञ थे। इनके विपय में एक कथा इस प्रकार वताट जाती है कि एक दिन तानसेन मे अकबर पूछ बैठे कि तानसेन गेमा भी कोई गायक है जो तुम से भी सुन्दर गाता हो । इस पर तानसेन ने अपने गुरु स्वामी हरिदास का नाम बताया। अकबर ने उनका गायन सुनने की इच्छा प्रकट की, किन्तु तानसेन ने कहा कि दरबार मे तो वे नहीं आयेंगे, तव एक नवीन युक्ति से काम लिया गया। अकवर ने अपना चेप बदल र तानसेन का तानपूरा लिया और तानसेन के माय स्वामी जी के यहाँ जा पहुँचे । जव स्वामी जी से गाने का आग्रह क्यिा गया तो उन्होंने अपनी अनिन्छ। प्रकट की। तब तानसेन ने एक चाल चली, उसने जानबूझ कर स्वामीजी के सामने एक राग अशुद्ध रूप में गाया। स्वामी जी से न रहा गया उन्होंने वह राग स्वय गार तानसेन को बताया । इस प्रकार अकबर की इच्छा पूर्ण हुई । स्वामी जी के गाने से प्रभावित होकर अस्थर ने तानसेन मे पूछा कि तानमेन तुम इतना सुन्दर क्यों नहीं गाते ? तानमेन ने उत्तर दिया, जहापनाह । मुझे जर दरवार की आज्ञा होती है तभी गाना पड़ता है, किन्तु गुरुजी की अन्तर आत्मा प्रेरणा करती है तभी वे गाते हैं इसीलिये उनके मङ्गीत में एक विशेषता है । " अश्यर के समय में ही गालियर के राजा मानसिह तोमर द्वारा राजा वालियर का प्रसिद्ध सङ्गीत घराना चालू हुआ । ध्रुपद गायकी के न आविष्कार का श्रेय भी राजा मानसिंह को ही दिया जाता है। ........ इन्हीं के समय में प्रसिद्ध गोगा amazा लिन