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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/३५

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  • सङ्गीत विशारद *

कर्नाटकीय शुद्ध रे, ध हमारी हिन्दुस्थानी पद्वति के कोमल रे,ध के समान हैं तथा हमारे शुद्ध रे-ध उनके शुद्ध ग - नि हैं। हिन्दुस्थानो स्वर कर्नाटकी (दक्षिणी) स्वर २ कोमल रे शुद्वरे कोमल ग शुद्ध ग शुद्ध म तीन म सा शुद्ध रे पच श्रुति रे या शुद्ध ग पट श्रुति रे, साधारण ग अन्तर ग शुद्ध म ५ प्रतिम १ कोमल ध १० शुद्ध ध ११ कोमल नि १२ शुद्ध नि शुद्ध पच श्रुति ध, या नि शुद्ध पट श्रुति ध, या कैशिक नि काफली नि क्योंकि हमारे कोमल रेघ उनके शुद्ध रे, ध हैं और हमारे शुद्ध रे घ उनके शुद्ध ग-नि है, अत उनके (कर्नाटकी) स्वरी के अनुसार शुद्ध पर सप्तक इस प्रकार होगा सा रे ग म प ध नि - कर्नाटकी सा रे रे म प ध ध - हिन्दुस्तानी उपरोक्त कर्नाटकी शुद्ध सप्तक को दक्षिणी विद्वान 'मुसारी मेल' कहते हैं । कर्नाटकी स्वरों में किसी स्वर को कोमल अवस्था में नहीं माना गया है, अर्थात् उनके शुद्ध स्वर ही सबसे नीची अवस्था में हैं। जब उनका रुप बदलता है अर्थात् विकृत होते हैं तो वे और नीचे न हटकर ऊपर को जाते हैं, जैसे शुद्ध रे के आगे उनका चतु श्रुति रे आता है, इसी को वे शुद्ध ग कहते हैं और शुद्ध ग के आगे साधारण ग फिर अन्तर ग नाम उन्होंने दिये हैं।