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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/८८

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मूर्च्छना क्रमात्स्वराणां सप्तानामारोहेश्चावरोहणम् । मूर्च्छनेत्युच्युते ग्रामत्रये ताः सप्तसप्त च ॥ १२ ॥ अर्थात्-सात स्वरों का क्रम से आरोह तथा अवरोह करना मूर्च्छना कहलाता है। तीन ग्राम हैं, उनमें से प्रत्येक की ७-७ मूर्च्छनाएं है । तत्र मध्यस्थषड़जेन षड़जग्रामस्य मूर्च्छना । प्रथमारभ्यतेऽन्यास्तु निषादाद्यैर धस्तनैः ॥ ६४ ॥ –सङ्गीत दर्पण मध्यस्थान के षड़ज स्वर से षड़ज गाम की पहिली मूर्च्छना आरम्भ होती है । शेष छै मूर्च्छनाएं स्वर (षड़ज ) के नीचे के निषादादि स्वरों से शुरू होती हैं। इस प्रकार ३ ग्रामों से २१ मूर्च्छना प्राचीन शास्त्रकार बताते हैं। नीचे उनके नाम और स्वर दिये जाते हैं: षड़ज ग्राम की मूर्च्छना नं० नाम मूर्च्छना आरोह अवरोह उत्तरामन्द्रा । रजनी उत्तरायता शुद्ध षड़जा सा रे ग म प ध नि नि ध प म ग रे सा | नि सा रे ग म प ध | ध प म ग रे सा नि | ध नि सा रे ग म प प म ग रे सा नि ध | प ध नि सा रे ग म म ग रे सा नि ध प म प ध नि सा रे ग ग रे सा नि ध प म ग म प ध नि सा रे | रे सा नि ध म ग रे ग म प ध नि सा सा नि ध प म ग रे मत्सरीकृता अश्वक्रान्ता अभिरुद्गता