पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/८९

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  • सगीत विशारद *

मध्यम ग्राम की मूच्छेना मौवीरी हरिणाश्वा क्लोपनता शुद्धमध्या | म प ध नि सा रे ग ग रे सा नि ध प म ग म प व नि सा रे सा नि ध प म ग रे ग म प ध नि सा सा नि ध प म ग रे सा रे ग म प व नि| नि ध प म ग रे सा नि सा रे ग म प व व म ग रे सा नि ध नि सा रे ग म प प म ग रे सा नि व प प नि सा रे ग म म ग रे सा नि ध प मार्गी पौरनी । हश्यका गन्धार ग्राम की मर्छनानोट-प्राचीन शास्त्रों मे गन्धार ग्राम को ही निपाद ग्राम भी कहा है, अत इस ग्राम की पहली मूर्छना निपाद स्वर से ही आरम्भ होती है - । नन्दा नि सा रे ग म प ध | ध प म ग रे सा नि विशाला | ध नि सा रे ग म प प म ग रे सा नि व सुमुसी प ध नि सा रे ग म रें सा नि च ५ विचित्रा | म प ध नि सा रे ग ग रे सा | रोहिणी | ग म प ध नि सा रे रे सा नि ध मुसा रे ग म प ध नि सा सा नि ध प म ग रे आलापा | सा रे ग म प ध नि नि ध प म ग रे सा गान्धार ग्राम की इन ७ मूर्छनाओं के बारे मे दर्पणकार कहता है - ताश्चस्वर्गे प्रयोक्तव्या विशेषादन नोदिताः ॥१६॥ अर्थात्-इनका प्रयोग स्वर्गलोक में होता है। इसलिए विशेप वर्णन नहीं किया गया। इस प्रकार दर्पणकार ने केवल १४ मूर्च्छनाओं का ही उल्लेस किया है, यद्यपि नाम २१ मूर्च्छनाओं के दे दिये हैं। सगीत के विद्यार्थियों को यहा पर यह बता देना उचित होगा कि हमारे प्राचीन शास्त्रकारों ने मूर्च्छनाओं के जो स्वर दिये हैं, उन्हे केवल आरोह-अवरोह ही न समझ