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संग्राम

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भी तो इधर-उधर पड़ा नहीं दिखाई देता।

हलधर--(रोकर) काकी, मेरे लिये अब संसार सूना हो गया। वह गंगाकी गोदमें चली गई। अब फिर उसकी मोहिनी मूरत देखनेको न मिलेगी। भगवान बड़ा निर्दयी है। इतनी जल्द छीन लेना था तो दिया ही क्यों था।

फत्तू--बेटा, अब तो जो कुछ होना था वह हो चुका, अब सबर करो, और अल्लातालासे दुआ करो कि उस देवीको निजात दे। रोने-धोनेसे क्या होगा। वह तुम्हारे लिये थी ही नहीं। उसे भगवानने रानी बननेके लिये बनाया था। कोई ऐसी ही बात हो गई थी कि वह कुछ दिनोंके लिये इस दुनियामें आई थी। वह मीयाद पूरी करके चली गई। यही समझकर सबर करो

हलधर--काका, नहीं सबर होता। कलेजेमें पीड़ा हो रही है। ऐसा जान पड़ता है कोई उसे जबरदस्ती मुझसे छीन ले गया हो। हां, सचमुच वह मुझसे छीन ली गई है, और यह अत्याचार किया है सबलसिंह और उनके भाईने। न मैं हिरासतमें जाता न घर यो तबाह होता। उसका बध करनेवाले उसकी जान लेनेवाले यही दोनों भाई हैं। नहीं, इन दोनों भाइयोंको क्यों बदनाम करूं, सारी विपत्ति इस कानून की लाई हुई है जो गरीबोंको धनी लोगोंकी मुट्ठीमें कर देता है। फिर