पृष्ठ:संग्राम.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
संग्राम

१२८

रनीकी तरह चला करती है। लजाती नहीं। तेरे साथकी आई बहूरियाँ दो दो लड़कोंकी माँ हो गई हैं और तू अभी बांझ बनी है। न जाने कब तेरा पैरा इस घरसे उठेगा। जा नहानेको पानी रख दे नहीं तो भले पराठे चखाऊँगी। एक दिन काम न करूं तो मुंहमें मक्खी आने जाने लगे। सहजमें हो यह चरवौतियाँ नहीं उड़ती।

चम्पा--जैसी रोटियाँ तुम खिलाती हो ऐसी जहाँ छाती फाड़ूंगी वहीं मिल जायेंगी। यहाँ गद्दी मसनद नहीं लगी है।

गुलाबी--(दाँत पीसकर) जी चाहता है सटसे तालूसे जुबान खींच लें। कुछ नहीं, मेरी यह सब सासत भगुवा करा रहा है, नहीं तो तेरी मजाल थी कि मुझसे यों जुबान चलाती। कलमुंहेको और कोई घर न मिलता था जो अपने सिरकी बला यहाँ पटक गया। अब जो पाऊँ तो मुंह झौंस दूं।

चम्पा--अम्मांजी, मुझे जो चाहो कह लो, तुम्हारा दिया खाती हूँ, मारो या काटो, दादाको क्यों कोसती हो। भाग बखानो कि बेटे के सिरपर मौर चढ़ गया नहीं तो कोई बात भी न पूछता। ऐसा हुन नहीं बरसता था कि कोई देखके लट्टू हो जाता।

गुलाबी--भगवानको डरती हूं नहीं तो कच्चा ही खा जाती। न जाने कब इस अभागिन बांझसे संग छूटेगा।