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तीसरा अङ्क

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है! तभी तो भाई साहब लोट पोट हो गये। वाणी कितनी मधुर है। (प्रगट) मैं बिना आज्ञा ही चला आया, इसके लिये क्षमा मांगता हूँ। सुना है भाई साहबका कड़ा हुक्म है कि यहां कोई न आने पावे।

राजे०—आपका घर है, आपके लिये क्या रोक टोक। मेरे लिये तो जैसे आपके भाई साहब वैसे आप। मेरे धन्य भाग कि आप जैसे भक्त पुरुषके दर्शन हुए।

कंचन—(असमञ्जसमें पड़कर, मनमें) मैंने काम जितना सहज समझा था उससे कहीं कठिन निकला। सौन्दर्य कदाचित् बुदशक्तियोंको हर लेता है। जितनी बातें सोचकर चला था वह सब भूल गई, जैसे कोई नया पट्ठा अखाड़ेमें उतरते ही अपने सारे दांव पेंच भूल जाय। कैसे बात छेड़? (प्रगट) आपको यह तो मालूम ही होगा कि भाई साहब आपके साथ कहीं बाहर जाना चाहते हैं?

राजेश्वरी—(मुसकिरा कर) जी हां यह निश्चय हो चुका है।

कंचन—अब किसी तरह नहीं रुक सकता?

राजे०—हम दोनोंमेंसे कोई एक बीमार हो जाय तो रुक जाय।

कंचन—ईश्वर न करें, ईश्वर न करें, पर मेरा आशय यह