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पांचवा दृश्य
(स्थान—मधुबन, समय—९ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक

वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछालेपर बैठे हुए हैं,
फत्तू, मंगरू, हरदास आदि धूनीसे

ज़रा हटकर बैठे हैं।)

चेतनदास—संसार कपटमय है, किसी प्राणीका विश्वास नहीं। जो बड़े ज्ञानी, बड़े त्यागी, बड़े धर्मात्मा प्राणी हैं, उनकी चित्तवृत्तिको ध्यानसे देखो तो स्वार्थसे भरा पावोगे। तुम्हारा जमींदार धर्मात्मा समझा जाता है, सभी उसके यश और कीर्तिकी प्रशंसा करते हैं। पर मैं कहता हूँ ऐसा अत्याचारी, कपटी, धूर्त, भ्रष्टाचरण मनुष्य संसारमें न होगा।

मंगरू—बाबा आप महात्मा हैं, आपकी जुबान कौन पकड़े, पर हमारे ठाकुर सचमुच देवता हैं। उनके राजमें हमको जितना सुख है उतना कभी नहीं था।

हरदास—जेठीकी लगान माफ कर दी थी। अब असामियोंको भूसे चारेके लिये बिना व्याजके रुपये दे रहे हैं।