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संग्राम


सैकड़ों जानें जातीं।

हलघर––अपनी जानको तो डरते ही नहीं। इधर ही आ रहे हैं। सवेरे-सवेरे भले आदमीके दर्शन हुए।

फत्तू––उस जन्मके कोई महात्मा हैं, नहीं तो देखता हूं जिसके पास चार पैसे हो गये वह यही सोचने लगता है कि किसे पीसके पी जाऊं। एक बेगार भी नहीं लगती, नहीं तो पहले बेगार देते देते धुर्रे उड़ जाते थे। इसी गरीबपरवरकी बरकत है कि गांवमें न कोई कारिन्दा है, न चपरासी पर लगान नहीं रुकता। लोग मीयादके पहले ही दे आते हैं। बहुत गांव घूमा पर ऐसा ठाकुर नहीं देखा।

(सबलसिह घोड़ेपर आकर खड़ा हो जाता है। दोनों आदमी झुक-झुककर सलाम करते हैं। राजेश्वरी घूंघट निकाल लेती है।)

सबल––कहो बड़े मियां, गांवमें सब खैरियत है न?

फत्तू––हजूरके अकबालसे सब खैरियत है।

सबल––फिर वही बात। मेरे अकबालको क्यों सराहते हो। यह क्यों नहीं कहते कि ईश्वर की दयासे अल्लाहके फज्ल से खैरियत है। अबकी खेती तो अच्छी दिखाई देती है!

फत्तू––हाँ सरकार, अभीतक तो खुदाका फज्ल है।

सबल––बस इसी तरह बातें किया करो। किसी आदमीकी खुशामद मत करो चाहे वह जिलेका हाकिम ही क्यों न हो।