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संग्राम

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(हलधर चौकन्ना दृष्टिसे ताकता हुआ सबलके साथ उसके
दीवानखाने में जाता है)

सबल—तख्तपर बैठ जाओ और सुनो। यह सारी आग कंचनसिंहकी लगाई हुई है। उसने कुटनी द्वारा राजेश्वरीको घरसे निकलवा लिया है। उसके गोइन्दोंने राजेश्वरीका उससे बखान किया होगा। वह उसपर मोहित हो गया और तुम्हें जेल पहुँचाकर अपनी इच्छा पूरी की। जबसे मुझे यह समाचार मिला है मैं उसका शत्रु हो गया हूँ। तुम जानते हो मुझे अत्याचारसे कितनी घृणा है। अत्याचारी पुरुष चाहे वह मेरा पुत्र ही क्यों न हो, मेरी दृष्टिमें हिंसक जन्तुके समान है और उसका वध करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। इसीलिये मैं यह तलवार लेकर कंचनसिंहका वध करने जा रहा था। इतने में तुम दिखाई पड़े। मुझे अब मालूम हुआ कि जिसे मैं बड़ा, धर्मात्मा, ईश्वरभक्त,सदाचारी और त्यागी समझता था वह वास्तवमें एक परले दरजेका व्यभिचारी, विषयी मनुष्य हैं। इसीलिये उसने अबतक विवाह नहीं किया। उसने कर्मचारियोंको घूसदेकर तुम्हें चुपके-चुपके गिरफ्तार करा लिया और अब राजेश्वरीके साथ विहार करता है। अभी आधी रातको वहांसे लौटकर आया है। मैं तुमसे सारा वृत्तान्त कह सुनाया, अब तुम्हारी जो इच्छा हो करो।