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संग्राम

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आपने मेरा घर उजाड़ा है तो मैं आपको भी जीता न छोड़ूगा। मेरा तो जो कुछ होना था हो चुका पर मैं अपने उजाड़नेवालोको कुकर्मका सुख न भोगने दूंगा।

(चला जाता है)

सबल—(मनमें) मैं कितना नीच हो गया हूँ। झूठ, दगा, फरेब, किसी पापसे भी मुझे हिचक नहीं होती। पर जो कुछ भी हो हलधर बड़े मौकेसे आ गया। अब बिना लाठी टूटे ही सांप मरा जाता है।

(प्रस्थान)