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संग्राम

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हूँ। तुम मेरे भक्त हो इसलिये यह चेतावनी देना मेरा कर्तव्य था। योद्धाओंकी भांति क्षेत्र में निकलो और अपने शत्रुके मस्तकको पैरोंसे कुचल डालो, उसका गेंद बनाकर खेलो अथवा अपनी तलवारकी नोकपर उछालो। यही वीरोंका धर्म है। जो प्राणी क्षत्रिय वंशमें जन्म लेकर संग्रामसे मुंह मोड़ता है वह केवल कापुरुष ही नहीं, पापी है, विधर्मी है, दुरात्मा है। कर्मक्षेत्रमें कोई किसीका पुत्र नहीं, भाई नहीं, मित्र नहीं, सब एक दूसरेके शत्रु हैं। यह समस्त संसार कुछ नहीं; केवल एक वृहतः विराट शत्रुता है। दर्शनकारों और धर्माचार्य्यों ने संसारको प्रेममय कहा है। उनके कथनानुसार ईश्वर स्वयं प्रेम है। यह उस भ्रान्तिका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है जिसने संसारको वेष्ठित कर रखा है। भूल जाओ कि तुम किसीके भाई हो। जो तुम्हारे ऊपर आघात करे उसका प्रतिघात करो, जो तुम्हारी ओर वक्र नेत्रोंसे ताके उसकी आंखें निकाल लो। राजेश्वरी तुम्हारी है, प्रेमके नाते उसपर तुम्हारा ही अधिकार है। अगर तुम अपने कर्तव्य-पथसे हटकर उसे उस पुरुषके हाथोंमें छोड़ दोगे जिससे उसे चाहे पहले प्रेम रहा हो पर अब वह उससे घृणा करती है, तो तुम न्याय, नीति और धर्मके घातक सिद्ध होगे और जन्म जन्मान्तरों तक इसका दण्ड भोगते रहोगे।

(चेतनदासका प्रस्थान)