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तीसरा अङ्क

१८९

हूँ। मेरे जीवन का अंत हो यही मेरे पापोंका दण्ड है। मैं तो स्वयं अपनेको इस पाप-जालसे मुक्त करना चाहता था। तुमने क्यों मुझे बचा लिया। (आश्चर्य्य से) अरे, यह तो तुम हो हलधर?

हलधर—(मनमें) कैसा बेछल कपट का आदमी है। (प्रगट) आप आरामसे लेटे रहें, अभी उठिये न।

कंचन—नहीं अब नहीं लेटा जाता। (मनमें) समझमें आ गया। राजेश्वरी इसीकी स्त्री है। इसीलिये भैयाने वह सारी माया रची थी। (प्रगट) मुझे उठाकर बैठा दो। बचन दो कि तुम भैयाका कोई अहित न करोगे?

हलधर—ठाकुर मैं यह बचन नहीं दे सकता।

कंचन—किसी निर्दोषकी जान लोगे? तुम्हारा घातक मैं हूं। मैंने तुम्हें चुपकेसे जेल भिजवाया और राजेश्वरीको कुटनियों द्वारा यहाँ बुलाया।

(तीन डाकू लाठियां लिये आते हैं।)

एक—क्यों गुरू, पड़ा हाथ भरपुर।

दूसरा—वह तो खासा टैयांसा बैठा हुआ है। लाओ मैं एक हाथ दिखाऊँ।

हलधर—खबरदार हाथ न उठाना।

पहला—क्या कुछ हत्थे चढ़ गया क्या?