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तीसरा अङ्क

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गुलाबी—है क्या यह डायन मुझे विष देनेपर तुली हुई है। यह खाना है कि जहर है। मारा नमक भर दिया। भगवान न जाने कब इसकी मिट्टी इस घरसे उठायेंगे। मर गये इसके बाप, चचा। अब कोई झांकतातक नहीं। जबतक व्याह न हुआ था द्वारकी मिट्टी खोदे डालते थे। इतने दिन इस अभागिनीको रसोई बनाते हो गये, कभी ऐसा न हुआ कि मैंने पेटभर भोजन किया हो। यह मेरे पीछे पड़ी हुई है.........

भृगु—अम्मां, देखो सिर लोहूलुहान हो गया। जरा नमक ज्यादा ही हो गया तो क्या उसकी जान ले लोगी। जलती हुई दाल डाल दी। सारे बदनमें छाले पड़ गये। ऐसा भी कोई क्रोध करता है।

गुलाबी—(मुँह चिढ़ाकर) हाँ हाँ देख, मरहम पट्टी कर, दौड़ डाक्टरको बुला ला नहीं कहीं मर न जाय। अभी लौंडा है, त्रिया चरित्र, देखा कर! मैंने उधर पीठ फेरी, इधर ठहाकेकी हँसी उड़ने लगेगी। तेरे सिर चढ़ानेसे तो इसका मिजाज इतना बढ़ गया है। यह तो नहीं पूछता कि दालमें क्यों इतना नमक झोंक दिया, उल्टे और घावपर मरहम रखने चला है।

(झमकमर चली जाती है।)

चम्पा—मुझे मेरे घर पहुँचा दो।

भृगु—मारा सिर लोहूलोहान हो गया। इसके पास रुपये