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संग्राम

२०४

इन्स०—अच्छा, अपने बयानपर अंगूठे का निशान दो। तुम्हारा क्या नाम है जी? इधर आओ।

हरदास—(सामने) हरदास।

इन्स०—सच्चा बयान देना जैसा मंगरूने दिया है, वरना तुम जानोगे।

हरदास—(मनमें) सबल सिंह तो अब बचते नहीं,मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं। यह जो कुछ कहलाना चाहते हैं मैं उससे चार बात ज्यादा ही कहूँगा। यह हाकिम हैं, खुश होकर मुखिया बना दें तो सालमें सौ दो सौ रुपये अनायास ही हाथ लगते रहे। (प्रगट) हजूर जो कुछ जानता हूं वह रत्ती २ कह दूंगा।

इन्स०—तुम समझदार आदमी मालूम होते हो। अपना नफ़ा नुकसान समझते हो। यहां पचायतके बारेमें क्या जानते हो?

हरदास—हजूर,ठाकुर सबल सिंहने खुलवाई थी। रोज यही कहा करें कि कोई आदमी सरकारी अदालतमें न जाय। सरकारके इसटाम क्यों खरीदो। अपने झगड़े आप चुका लो। फिर न तुम्हें पुलिसका डर रहेगा न सरकारका। एक तरहसे तुम अदालतोंको छोड़ देनेसे ही सुराज पा जाओगे। यह भी हुकुम दिया था कि जो आदमी अदालत जाय उसका हुक्का पानी बन्द कर देना चाहिये।

इन्स०—बयान ऐसा होना चाहिये। अच्छा सबल सिंहने बेगारके बारे में तुमसे क्या कहा था?