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चौथा अङ्क

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है। अब मेरा उद्धार आपके सिवा और कौन कर सकता है। आपकी दासी हूँ, आपकी चेरी हूँ। मेरे अवगुणोंको न देखिये। अपनी विशाल दयासे मेरा बेड़ा पार लगाइये।

चेतन—अब मेरे वशकी बात नहीं। मैंने तेरे कल्याणके लिये, तेरी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिये बड़े-बड़े अनुष्ठान किये थे। मुझे निश्चय था कि तेरा मनोरथ सिद्ध होगा। पर इस पापाभिनयने मेरे समस्त अनुष्ठानोंको विफल कर दिया। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह कुकर्म तेरे कुलका सर्वनाश कर देगा।

ज्ञानी—भगवन्, मुझे भी यही शंका हो रही है। मुझे भय है कि मेरे पतिदेव स्वयं पश्चात्तापके आवेशमें अपना प्राणान्त न कर दें। उन्हें इस समय अपनी दुष्कृत्तिपर अत्यन्त ग्लानि हो रही है। आज वह बैठे-बैठे देरतक रोते रहे। इस दुख और निराशाकी दशामें उन्होंने प्राणोंका अन्त कर दिया तो कुलका सर्वनाश हो जायगा। इस सर्वनाशसे मेरी रक्षा आपके सिवा और कौन कर सकता है। आप जैसा दयालु स्वामी पाकर अब किसकी शरण जाऊँ? ऐसा कोई यत्न कीजिये कि उनका चित्त शांत हो जाय। मैं अपने देवरका जितना आदर और प्रेम करती थी वह मेरा हृदय ही जानता है। मेरे पति भी भाईको पुत्रके समान समझते थे। वैमनस्यका लेश भी न था। पर अब तो