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चौथा अङ्क
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कर अपने कोमल हाथोंसे मुझे पिलाओ और प्रसाद स्वरूप स्वयं पान करो। तुम्हारा अन्तःकरण आलोकमय हो जायगा। सांसारिकताकी कालिमा एक क्षणमें कट जायगी और भक्तिका उज्वल प्रकाश प्रस्फुटित हो जायगा। यह वह सोमरस है जो ऋषिगण पान करके योगबल प्राप्त किया करते थे।
चेतनदास पी जाते हैं)
चेतन—यह प्रसाद है, तुम भी पान करो।
ज्ञानी—भगवन्, मुझे क्षमा कीजिये।
चेतन—प्रिये, यह तुम्हारी पहली परीक्षा है।
ज्ञानी—(कमण्डल मुंहसे लगाकर पीती है। तुरत उसे अपने शरीरमें एक विशेष स्फूर्तिका अनुभव होता है।) स्वामिन् यह तो कोई अलौकिक वस्तु है।
चेतन—प्रिये, यह ऋषियोंका पेय पदार्थ है। इसे पीकर वह चिरकाल तक तरुण बने रहते थे। उनकी शक्तियाँ कभी क्षीण न होती थीं। थोड़ासा और दो। आज बहुत दिनोंके बाद यह शुभ अवसर प्राप्त हुआ है।
दास पी जाते हैं। ज्ञानी स्वयं थोड़ासा