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चौथा अङ्क

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नहीं। अगर मैं इस काममें सफल न हो सकूं तो मेरा दोष नहीं है। (प्रगट) मैं आपके घरको उजाड़नेका अपराध अपने सिर नहीं लेना चाहती।

सबल—प्रिये, मेरा घर मेरे रहनेसे ही उजड़ेगा, मेरे अंतर्धान होनेसे वह बच जायगा। इसमें मुझे जरा भी सन्देह नहीं है।

राजे०—फिर अब मैं आपसे डरती हूँ, आप शक्की आदमी हैं। न जाने किस वक्त आपको मुझपर शक हो जाय। जब अपने जरासी शकपर............

सबल—(शोकातुर होकर) राजेश्वरी, उसकी चर्चा न करो। उसका प्रायश्चित्त कुछ हो सकता है तो वह यही है कि अब शक और भ्रमको अपने पास फटकने भी न दूं। इस बलिदानसे मैंने समस्त शंकाओंको जीत लिया है। अब फिर भ्रममें पड़ूं तो मैं मनुष्य नहीं पशु हूँगा।

राजे०—आप मेरे सतीत्वकी रक्षा करेंगे? आपने मुझे वचन दिया था कि मैं केवल तुम्हारा सहवास चाहता हूँ।

सबल—प्रिये, प्रेमको बिना पाये संतोष नहीं होता। जबतक मैं गृहस्थीके बन्धनोंमें जकड़ा था, जबतक भाई, पुत्र, बहिनका मेरे प्रेमके एक अंशपर अधिकार था तबतक मैं तुम्हें न पूरा प्रेम दे सकता था और न तुमसे सर्वस्व मांगनेका साहस कर सकता था। पर अब मैं संसारमें अकेला हूं, मेरा सर्वस्व तुम्हारे