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संग्राम

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मेरे प्रति जो कुछ किया उचित किया। उसके सिवा मेरे विश्वासघातका और कोई दण्ड न था। उन्होंने वही किया जो मैं आप करने जाता था। अपराध सब मेरा है। तुमने मुझपर दया की है। इतनी दया और करो। इसके बदलेमें तुम जो कुछ कहो करनेको तैयार हूं। मैं अपनी सारी कमाई जो २० हजारसे कम नहीं है तुम्हें भेंट कर दूंगा। मैंने यह रुपये एक धर्मशाला और देवालय बनवानेके लिये संचित कर रखे थे। पर भैयाके प्राणोंका मूल्य धर्मशाला और देवालयसे कहीं अधिक है।

हलधर—ठाकुर साहब ऐसा कभी न होगा। मैंने धनके लोभसे यह भेष नहीं लिया है। मैं अपने अपमानका बदला लेना चाहता हूँ। मेरा मर्य्याद इतना सस्ता नहीं है।

कंचन—मेरे यहाँ जितनी दस्तावेजें हैं वह सब तुम्हें दे दूँगा।

हलधर—आप व्यर्थ ही मुझे लोभ दिखा रहे हैं। मेरी इज्जत बिगड़ गई। मेरे कुलमें दाग लग गया। बाप-दादोंके मुँह में कालिख लग गया। इज्जतका बदला जान है, धन नहीं। जबतक सबलसिंहकी लाशको अपनी आंखोंसे तड़पते न देखूँगा मेरे हृदयकी ज्वाला न शान्त होगी।

कंचन—तो फिर सवेरे तक मुझे भी जीता न पावोगे।

(प्रस्थान)