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संग्राम

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खूब करता है। (प्रगट) बेटा! इस विषयमें हमारे प्राचीन ऋषियोंने बड़ी मार्मिक व्यवस्थाएं की हैं, अभी तुम न समझ सकोगे। जाओ सैर कर आओ, ओवरकोट पहन लेना, नहीं तो सरदी लग जायगी।

अचल—मुझे वहाँ कब ले चलियेगा जहां आप कल भोजन करने गये थे। मैं भी राजेश्वरीके हाथका बनाया हुआ खाना खाना चाहता हूँ। आप चुपकेसे चले गये, मुझे बुलायातक नहीं। मेरा तो जी चाहता है कि नित्य गांव ही में रहता। खेतों में घूमा करता।

सबल—अच्छा अब जब वहां जाऊंगा तो तुम्हें भी साथ ले लूंगा।

(अचलसिंह चला जाता है।)

सबल—(आप ही आप) लेखका दूसरा Point क्या होगा? अदालतें सबलोंके अन्यायकी पोषक हैं। जहां रुपयों के द्वारा फरियाद की जाती हो, जहां वकीलों, बारिस्टरों के मुंहसे बात की जाती हो, वहां गरीबों की कहां पैठ। यह अदालत नहीं, न्यायकी बलिवेदी है। जिस किसी राज्यकी अदालतोंका यह हाल हो……जब वह थाली परसकर मेरे सामने लाई तो मुझे ऐसा मालूम होता था जैसे कोई मेरे हृदयको खींच रहा हो। मगर उससे मेरा स्पर्श हो जाता तो शायद मैं मूर्च्छित हो जाता।