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सातवां दृश्य
(स्थान—सबल सिंहका मकान, समय—२॥ बजे रात, सबल
सिंह अपने बागमें हौज़के किनारे बैठे हुए हैं।)

सबल—(मनमें) इस जिन्दगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अन्धेरा है, कहीं प्रकाशकी झलक तक नहीं। सारे मंसूबे, सारे इरादे खाकमें मिल गये। अपने जीवनको आदर्श बनाना चाहता था, अपने कुलको मर्यादाके शिखरपर पहुँचाना चाहता था, देश और राष्ट्रकी सेवा करना चाहता था, समग्र देशमें अपनी कीर्ति फैलाना चाहता था। देशको उन्नतिके परमस्थानपर देखना चाहता था। उन बड़े-बड़े इरादोंका कैसा करुणाजनक अन्त हो रहा है। फले फूले वृक्षकी जड़में कितनी बेदरदीसे आरा चलाया जा रहा है। कामलोलुप होकर मैंने अपनी ज़िन्दगी तबाह कर दी। मेरी दशा उस भांझीकीसी है जो नावको बोझनेके बाद शराब पी ले और नशेमें नावको भंवरमें डाल दे। भाईकी हत्या करके भी अभीष्ट न पुरा हुआ। जिसके लिये इस पाप कुण्डमें कूदा वह भी अब मुझसे घृणा करती है।