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पांचवां अङ्क

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बचाता। सोचता कि मर रही है मरने दो। शायद यह मुझे मारनेके ही लिये यहां तलवार लेकर आये होंगे। मुझे इस दशामें देखकर दया आ गई। पर इनकी दयापर मेरा जी झुंझला रहा है। मेरी यह बदनामी, यह जगहंसाई बिलकुल निष्फल हो गई। इसमें जरूर ईश्वरका हाथ है। सबल सिंहके परोपकारने उन्हें बचाया। कंचनसिंहकी भक्तिने उनकी रक्षा की। पर इस देवीकी जान व्यर्थ जा रही है। इसका दोष मेरी गरदनपर है। इस एक देवीपर कई सबलसिंह भेंट किये जा सकते हैं। (ज्ञानीको ध्यानसे देखकर) आंखें पथरा गईं सांस उखड़ गई, पतिके दर्शन न कर सकेंगी, मनकी कामना मनमेंही रह गई। (गुलाबके छीटे देकर) छन भर और.........

ज्ञानी—(आंखें खोलकर) क्या वह आ गये? कहाँ हैं, जरा मुझे उनके पैर दिखा दो।

राजे०—(सजल नयन होकर) आते ही होंगे, अब देर नहीं है। गुलाबजल पिलाऊं?

ज्ञानी—(निराशासे) न आयेंगे, कह देना तुम्हारे चरणोंकी मुच्छित हो जाती है।

(चेतनदासका प्रवेश)

राजे०—यह समय भिक्षा मांगनेका नहीं है। आप यहां कैसे चले आये?