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संग्राम

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पर हैं? किनके घरोंकी महिलाएं रो-रोकर अपना जीवनक्षेप कर रही हैं? किनकी बन्दूकोंसे जंगलके जानवरोंकी जान संकट में पड़ी रहती है? किन लोगोंकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये आये दिन समरभूमि रक्तमयी होती रहती है? किनके सुखभोग के लिये गरीबोंको आये दिन बेगारें भरनी पड़ती हैं? यह वही लोग हैं जिनके पास ऐश्वर्य है, सम्पत्ति है, प्रभुता है, बल है। उन्हींके भारसे पृथ्वी दबी हुई है, उन्हींके नखोंसे ससार पीड़िन हो रहा है। सम्पत्ति ही पापका मूल है, इसीसे कुवासनाएं जागृत होती हैं, इसीसे दुर्व्यसनोंकी सृष्टि होती है। गरीब आदमी अगर पाप करता है तो क्षुधाकी तृप्तिके लिये। धनी पुरुष पाप करता है अपनी कुवृत्तियों, और कुवासनाओंकी पूत्ति के लिये। मैं इसी व्याधिका मारा हुआ हूँ। विधाताने मुझे निर्धन बनाया होता, मैं भी अपनी जीविकाके लिये पसीना बहाता होता, अपने बाल बच्चोंके उदरपालनके लिये मजूरी करता होता तो मुझे यह दिन न देखना पड़ता, यो रक्तके आंसू न रोने पड़ते। धनीजन पुण्य भी करते हैं, दान भी करते हैं, दुखी आदमियोंपर दया भी करते हैं। देशमें बड़ी-बड़ी धर्मशालाएं, सैकड़ों पाठशालाएं, चिकित्सालय, तालाब, कूएं उनकी कीर्तिके स्तम्भ रूप खड़े हैं, उनके दानसे सदाव्रत चलते हैं, अनाथों और विधवाओं का पालन होता है,