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तृतीय दृश्य

समय-८ बजे दिन, स्थान-सबलसिंहका मकान-कंचनसिंह

अपनी सजी हुई बैठकमें दुशाला ओढ़े, आंखोपर सुनहरी
ऐनक चढ़ाये मसनद लगाये बैठे है, मुनीमजी बहीमें

कुछ लिख रहे हैं।

कञ्चन―"समस्या यह है कि सूदका दर कैसे घटाया जाय। भाई साहब मुझसे नित्य ताकीद किया करते हैं कि सूद कम लिया करो। किसानोंकी ही सहायताके लिये उन्होंने मुझे इस कारोबार में लगाया। उनका मुख्य उद्देश्य यही है। पर तुम जानते हो धनके बिना धर्म नहीं होता। इलाकेकी आमदनी घरके जरूरी खर्चके लिये भी काफी नहीं होती। भाई साहबने किफ़ायतका पाठ नहीं पढ़ा। उनके हजारों रुपये साल तो केवल अधिकारियोंके सत्कार की भेंट हो जाते हैं। घुड़दौड़ और पोलो और क्लबके लिये धन चाहिये। मगर उनके आसरे रहूँ तो सैकड़ों रुपये जो मैं स्वयं साधुजनोंके अतिथि-सेवामें