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पहला अङ्क

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गाड़ीमें धक्के खाते हैं। एक-एक डब्बेमें जहां दसकी जगह है वहाँ २०--२५--३०--४० ठूंस दिये जाते हैं। हाकिमोंके वास्ते सभी सजी-सजाई गाड़ियां रहती हैं, आरामसे गद्दीपर लेटे हुए चले जाते हैं। रेलगाडीको जितना हम किसानोंसे मिलता है उसका एक हिस्सा भी उन लोगोंसे न मिलता होगा। मगर तिसपर भी हमारी कहीं पूछ नहीं। जमानेकी खूबी है!

हलधर--सुना है मेमें अपने बच्चोंको दूध नहीं पिलातीं।

फत्तू--सो ठोक है, दूध पिलानेसे औरतका शरीर ढीला हो जाता है, वह फुरती नहीं रहती। दाइयां रख लेते हैं। वही बच्चोंको पालती पोसती हैं। मां खाली देख भाल करती रहती हैं। लूट है लूट!

सलोनी--दरखास दो मेरा मन कहता है छूट हो जायगी।

फत्तू--कह तो दिया दो चार आनेकी छूट हुई भी तो बरसों लग जायंगे। पहले पटवारी कागद बनायेगा उसको पूजो, सब कानूगो जांच करेगा, उसको पूजो, तब तहसीलदार नजर सानी करेगा, उसको पूजो, तब डिप्टीके सामने कागद पेस होगा, उसको पूजो, वहांसे तब बड़े साहबके इजलासमें जायगा, वहाँ अहलमद और अरदली और नाजिर सभीको पूज ना पड़ेगा। बड़े साहब कमसनरको रपोट देंगे, वहां भी कुछ कुछ पूजा करनी पड़ेगी। इस तरह मनजूरी होते-होते एक जुग बीत