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पहला अङ्क

५५

नारीके यही लच्छन हैं। मुझे भी अपने साथ लेती चलना।

(गाती है)

चलो पटनेकी देखो बहार, सहर गुलजार रे।

फत्तू--हां दाई खूब गा, गानेका यही अवसर है। सुखम तो सभी गाते हैं।

सलोनी--और क्या बेटा अब तो जो होना था हो गया। रोनेसे लौट थोड़े ही आयेगा।

(गाती है)

उसी पटनेमें तमोलिया बसत है।
बीड़ोंकी अजब बहार रे।
पटना सहर गुलजार रे॥

फत्तू--काकीका गाना तानसेन सुनता तो कानोंपर हाथ रखता। हां दाई।

(गाती है)

उसी पटने में बजजवा बसत है।
कैसी सुन्दर लगी है बाजार रे।
पटना सहर गुलजार रे।

फत्तू--बस एक कड़ी और गा दे काकी। तेरे हाथ जोड़ता हूं। जी बहल गया।

सलोनी--जिसे देखो गानेको ही कहता है, कोई यह नहीं