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संग्राम

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विचारों को भ्रांतिकारक समझता था। आज आपके श्रीमुखसे उनका समर्थन सुनकर मेरे कितने ही निश्चित सिद्धान्तोंको आघात पहुंच रहा है।

चेतन--इन्द्रियों द्वारा ही हमको जगत्का ज्ञान प्राप्त होता है। वृत्तियोंको दमन कर देनेसे ज्ञानका एक मात्र द्वार ही बन्द हो जाता है। अनुभवहीन आत्मा कदापि उच्च पद नहीं प्राप्त कर सकती। अनुभवका द्वार बन्द करना विकासका मार्गबन्द, करना है, प्रकृतिके सब नियमोंके कार्य्यमें बाधा डालना है। वही आत्मा मोक्षपद प्राप्त कर सकती है जिसने अपने ज्ञान द्वारा, इन्द्रियों को मुक्त रखा हो। त्यागका महत्व आह्वानमें नहीं है। जिसने मधुर सङ्गीत सुनी ही न हो उसे सङ्गीतकी रुचि न हो तो कोई आश्चर्य नहीं। आश्चर्य तो तब है कि जब वह सङ्गीत कलाका भली-भाँति आस्वादन करने, उसमें लिप्त होने के पीछे वृत्तियोंको उधरसे हटा ले। वृत्तियोंको दमन करना वैसा ही है जैसे बालकको खड़े होने या दौड़नेसे रोकना। ऐसे बालकको चोट चाहे न लगे पर यह अवश्य ही अपंग हो जायगा।

सबल--(मनमें) कितने स्वाधीन और मौलिक विचार हैं। (प्रगट) तब तो आपके विचार में हमें अपनी इच्छाओंको अबाध्य कर देना चाहिये।

चेतन--मैं तो यहांतक कहता हूं कि आत्माके विकासमें