पृष्ठ:संग्राम.pdf/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
संग्राम

६२

चेतन--(आपही आप) इस जिज्ञासाका आशय खूब समझता हूं। तुम्हारी अशान्तिका रहस्य खूब जानता हूं। तुम फिसल रहे थे, मैंने एक धक्का और दे दिया। अब तुम नहीं संभल सकते।