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दूसरा अङ्क

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यह काम ऐसे गुप्त रीतिसे होना चाहिये कि किसीको कानों कान खबर न हो। लोग यही समझें कि कहीं परदेश निकल गया होगा। तब मैं एक बार फिर राजेश्वरीसे मिलूं और तकदीरका फ़ैसला कर लूं। तब उसे मेरे यहां आकर रहने में कोई आपत्ति न होगी। गांवमें निरावलम्ब रहनेसे तो उसका चित्त स्वयं घबरा जायगा। मुझे तो विश्वास है कि वह यहाँ सहर्ष चली आवेगी। यही मेरा अभीष्ट है। मैं केवल उसके समीप रहना, उसके मृदु मुसक्यान, उसकी मनोहर वाणी......

(ज्ञानीका प्रवेश)

ज्ञानी--स्वामीजीसे आपकी भेंट हुईं?

सबल--हां।

ज्ञानी--तो उनके दर्शन करने जाऊं?

सबल--नहीं।

ज्ञानी--पाखड़ी हैं न? यह तो मैं पहले ही समझ गई थी।

सबल--नहीं, पाखण्डी नहीं हैं, विद्वान हैं, लेकिन मुझे किसी कारणसे उनमें श्रद्धा नहीं हुई। पवित्रात्माका यही लक्षण है कि वह दूसरोंके हृदयमें श्रद्धा उत्पन्न कर दे। अभी थोड़ी देर पहले मैं उनका भक्त था। पर इतनी देरमें उनके उपदेशोंपर विचार करनेसे ज्ञात हुआ कि उनसे तुम्हें ज्ञानोपदेश नहीं मिल सकता और न वह आशीर्वाद ही मिल सकता है जिससे तुम्हारी मनोकामना पूरी हो।