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दूसरा अङ्क

७९

हरदास--मैके भेज दिया जाय।

मंगरू--पूछो, जायगी?

फत्तू--पूछना क्या है कभी न जायगी। हलधर होता तो जाती। उसके पीछे कभी नहीं जा सकती।

राजे०--(द्वारपर खड़ी होकर) हां काका ठीक कहते हो। अभी मैके चली जाऊं तो घर और गांववाले यही न कहेंगे कि उनके पीछे गांवमें दस पांच दिन भी कोई देख-भाल करनेवाला नहीं रहा तभी तो चली आई। तुम लोग मेरी कुछ चिन्ता न करो। सलोनी काकीको घरमें सुला लिया करूंगी। और डर ही क्या है। तुम लोग तो हो ही।