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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/१६०

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प्रारंभिक युग


पंडित होइकै बेदु बषानै मूरषु नामदेउ रामहि जानं॥२॥

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निरवा = निकट। जल की...खजूरि = अज्ञेय के जानने की असंभव बात करते हैं।

मेरे प्रियतम राम

मारवाड़ी जैसे नीरू बालहा, बेलि बालहा करहला।
जिउ कुरंक निसि नाडु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ॥१॥
तेरानामु रुडों रूपु रूड़ो अति रंग रूड़ो मेरो रामईया॥रहाउ॥
जिउ धरणी कउ इंदु बालहा, कुसम वासु जैसे भंबरला।
जिउ कोकिल कउ अंवु बालहा, तिर मोरै मनि रामईआ॥२॥
बारिक कउ जैसे नीरू बालहा, तिऊ मेरे मनि जलधारा।
जिउ तरुणीकड कंतु बालहा तिउ मेरै मति रामईआ॥३॥
बारिक कर जैसे षोर बालहा, चात्रिक मुष जैसे जलधारा।
मछली कड जैसे नीरु बालहा, तिउ मेरै भनि रामईया ॥४॥
साधिक सिद्ध सगल मुनि चाहहि बिरले काहू डीठुला।
सगल भवन तेरो नामु बालहा, तिउ नामे मनि बीडुला॥५॥

बालहा = प्रिय। करह्ला = ऊंट। कुरंक = मृग। रूड़ो = सुन्दर। अंबु = आम। बारिक = बालक।

(८)

एकांत निष्ठा

नादभ्रमे जैसे मिरगाए। प्रान तजे बाको धिनानु न जाए॥१॥
अैसे रामा जैसे हरज। राम छोड़ि चितु अनत न फेरउ॥रहाउ॥
जिउ मीना हेरै पसूआरा। सोना गढ़ते हिरं सुनारा॥२॥
जिउ विषई टेरें पर नारी। कउडा डारत हिरे जुआरी॥३॥
जह जह वेषउ तह तह रामा। हरिके चरन नित धिआवे नामा॥४॥

हेरउ = देखो। कउड़ा = पासा।