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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२०९

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संत-काव्य


न कीजै = नहीं की जा सकती। संतन रेना = संतों के चरणोंकी धूल चाहता हूँ। माघो...मंगे = माधव, मेरी तुम्हारे साथ इस प्रकार नहीं निभेगी, स्वयं न दोगे तो माँग कर ही लूंगा। चूना = आटा। लूना = नमक। अध...दाले = आधा सेर दाल माँगता हूँ। मोको...जिवाले = इससे मुझे दोनों जून भोजन करादो। खाट तुलाई = चार पैर की खाट, तकिया तथा रूई भरी दोहर माँगता हूँ । बिछाने के लिए खिया अर्थात् सिली सुजनी माँगता हूँ। बीघा = लीन होकर। मैं...फबो मैंने कुछ भी किसी से नहीं लिया है, केवल तेरे नाम से ही शोभित होना हैं।

रमैंणी

भया दयाल विषहर जरि जागा। गहगहान प्रेम बहु लागा॥
भया अनंद जीव भये उल्हासा। मिले राम मनि पूरी आशा॥
मास असाढ़ रवि धरनि जरावैं। जरत जरत जल आइ बुझावै॥
रुति सुभाइ जिमी सब जागी। अमृत धार होइ झर लागी॥
जिमीं माहि उठी हरियाई। बिरहनि पीद मिले जन जाई॥
मनिका मनिकै भये उछाहा। कारनि कौन बिसारी नाहा॥
खेल तुम्हारा मरन भया मोरा। चौरासी लख कोन्हा फेरा॥
सेवग सुत जे होइ अनिआई। गुन श्रीगुन सब तुम्हि समाई॥
अपने औगुन कहूं न मारा। इहै अभाग जे तुम्ह न संभारा॥
दरबो नहीं कांइ तुम्ह नाहा। तुम्ह बिछुरे में बहु दुख चाहा॥
मेघ न बरिखे जाँहि उदासा। तऊ न सारंग सागर आसा॥
जहर भरचौ ताहि नहीं भावे। के मरि जाइ के उहे पियावे॥
में रं निरासी जब निध्य पाई। राम नाम जीव जाग्या जाई॥
नलनी कै ज्यू नीर अवारा। खिन विछरयां थें रवि प्रजारा॥
राम बिना जोव बहुत दुउख पावै। मन पतंग जगि अधिक जरावै॥
माघ मास रुति कवलि सारा। भयौ वसंत तब बाग संभारा॥
अपने रंगि सबै कोइ राता। मधुकर बास लेहि मैमंता॥