पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रारंभिक युग २१७ में तोरि मोरि असझिसों, कैसे कर निस्तारण। कह रैदास स्न करनास्य, जे जे जगत अधरा 1३।। यह . . . खोई =यह तो सभी प्रकार से गई गुजरी भवना है । अस" ब८ि सा रासमझी से। (११) तोही मोही मोही सही अंतर कैसा। कनिक कटिक जल तरंग जैसा ११। अउसे हमन पाप करतार, अहे अनंता। पतित पावन नाम कैसे हुंता ।।रहा? तुम जू नाइक नाछह अंतरजामी । भते जलू जानी जनते सुनामी है।२ा। सरीरु अराथू बोलउ बीरु दलू रविदास समदल समझाने कोज 1३ कनिक कबिसोने एवं सोन के बाड़े में ता=होता। पाठभेद-—अंतर ऐसा, ‘देवा हमन पाय करंत अनंता, ‘मैं कई नर तुहि अंतरजाम’, आम सदन में सब तुम माह , रैदास दास असमति सी कहiहो’। (१२) जउ हम बांधे मोह , हम प्रेम बंनि तुम बांधे , अपने छूटनको जनतु क<डु, हम छूटें तुम अराधे 1१। माधवेजनल डू जैसी फसरे अब कहा कंरदुणे औसी ।रहार्ड 11 मी करि' फांकिई अरु काटिच, रiधि कीड बहुबानी। चंड खंड क र भोजन कीनो, तक न बिसारिउ पानी ।।२है अपन बसें नहीं किसी को, भाबर को रि’ राज । मोहु पटलु स जगतु बिमापिचमगतनही संतापा 1।३ है॥ कहि रविदास भगति इक बाढ़ी, अब इह कासिड कही। जाकानि हम तुम अराधेसो बुधु अबष्टू सही है ।।४। जैसी तैसी वास्तविक स्थिति । "किड =चीरी गई । बहुबानी दमक कर ? पठभेद--'मैं हमें बाधे मोह फांसो से, हम तोको प्रेम जेबरिमा