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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२४६

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प्रारंभिकयुग २३३ ९ किया तथा उसी प्रकार मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में भी क्रमश: कबीरपंथ और मलूक-का भी सूत्रपात हो गया । जान पड़ता है कि राजस्थान के एक अन्य संत जंभनाथ ने भी गुरु नानक देव के समय में अपना विश्नुई संप्रदाय चलाया था और बिंदास निरंजनी की सम कालोन बावरी साहिबा में अपना बाबरीपंथ दिल्ली के निकट प्रव र्तित किया था ! संतपरंपरा के इतिहास के इस मध्य युग से संतों के उद्गों तथा उपदेश का लिखित रूप में रखा जाना भी आरंभ हो गया ? उनके श्रद्धालु शिष्यों के लिए उनकी विविध बानियों कहे को संगृहीत कर उन्हें .रक्षित रखना भी एक पुनीत कर्त्तव्य-सा हो गया ! तदनुसार गुरु नानकदेव एवं दादूदयाल को शिष्य परंपरा के लोगों ने इस ओर विशेष ध्यान देकर ऐसे रचना-संग्रहों के निर्माण की एक परिपाटी सी चला दी । इस प्रकार संत साहित्य कई रचना के साथ साथ उसकी सुरक्षा का भी प्रबंध हो गया है ऐसे संग्रहों में कभीकभी अपने पंथों वा संप्रदायों के प्रवर्तकों और प्रचारकों के अतिरिक्त उन अन्य ऐसे संतों की भी रचनाएं सम्मिलित कर ली जाती थीं जिनकी विचारधारा की उन नवसंगठिंग संस्थाओं के मत से न्यूनाधिक समा- नता रहा करती थी जिस कारण उनक द्वारा कतिथ्य ऐसो कृतियां भी सुरक्षित हो गईं जो केवल कंठस्थ रहने के कारण, बहुत पहले ही खो गई होती अथवा जिनके लिखित रूप में रहने पर भी , हम उन्हें कदा- चित् प्राप्त नहीं कर पाते। इस काल से न केवल संतनत के प्रचार क्षेत्र का ही विस्तार हुआ, अपितु उसके साधनों में भी वृद्धि हो चली । प्रचार क्षेत्र के विस्तार के साथसाथ इस समय की रचनाओं पर उसके निवासियों की भाषा का भी प्रभाव कुछ न कुछ पड़ा। यद्यपि कबीर साहब तथा गुरु नानक देव एवं दादूदयाल की कथन-शैलियाँ मूलत: एक ही प्रकार की थी और ये दोनों संत भी उन्हींकी भाँति प्रधानत-