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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२५५

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२४२ संत-काव्य नदरि करे सर्च पाईए, विन नावे किन साकु 1५। जिनी सबूपछाणिश्रा, सो सुखीरए जुग चार । हठ में त्रिसना मारिक, सदु रवि उर घात्रि । जगु सह लाहा एक नाम, पाइ गुर बीचारि ।६। साचड बखरु लाबी], लापुंसदा सरासि। साची दरगह , भाति सची अरबासि । पति सिउ लेखा निवईराम दास परगास १७। ऊंचा ऊंचड आखि, कहल न देखिझा जाईं। जह देखा तैद एक , सति गुरि वीजा दिखाई । जोति निरंतरि जाषी , नानक सहति सुभाइ 1८)। सामुरु==सागरसमुद्र। बोहिथ=बोहितजहाज। बाधु-अति- रिक्त से शुतुबारधूल। हो =औौर, अन्य। बाफिक=वचन में। नबरि ==कृपादृष्टि । ताइ=स्थिर दृष्टि। ना' नाम अर्थात् भक्ति, आत्म समर्पण का भाव । साकुई=महात् कार्य। अरदासि=विनय, प्रार्थना । आत्मचिंतन (७) पउर्ण पाणी अगनो का मेलु । चंचल चपल खुचिका खेलु । नई दरवाजे बसवा दुधारु । बुझूरे गिनानी एटू बीचारु 1१॥ कथला धकता सुरता सोई । आयु बीचारे सुगिआनी हई है।रहा। । देही माटी बोले पबणु । बुरे गिनानी शुआ है कउणु । ई सुरति वार्ड अहंकारु । उह न मूथा जो देखणहारु ।।२है। के कारण तट तथ जाही । रतन पदारथ धही माही । पढ़ि पढ़ पंडितु वाडु बखारें। भीतरि होदी वस्तु न जf ५३।। हउ न सूआ मेरी मुई बलाइ । औोहु न मूठ डो रहिया समझे। कछु नानक गुरि न हू दिखाइआ। मरता जाता नदरि न आइआ ।४। यही पद कुछ पाठांतर के साथ कबीर ग्रंथावली (पृष्ठ १०२) में, पद ४२ के रूप में भी आया है । बाढ=फ्यर्थ।