पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२६५

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२५२ संत-काव्य गरबू न की नानकामनु सिरि आगे भार !1en जिमि कीचा लिमि खिझा, अापे जा सोइ । किसन्नो कहो नानका, जाघर बरसे से कोइ ५१e। घनचंता इबही कहे, अवरी धनकड जाs। मान निरर्थनु तितु दिमि, जिड दिनि बिस नाउ ।११। : वंड बू लाइओ T नंदगी, पकड़ेि ढंढोले बढ़ । भोला वंदु न जाणईकरक कलेजे सहि 11१२॥ नानक सावणि बसं, बहु उमाहा होइ । नागो सिरई मछोआ, रसीना घरि धनु होइ १५१३है. जिनके पले धन बसेतिनका नाउ फकीर। जिन्हके हिंदै तू बसहि, ते नर गुरु णी गहोर ५१४। सिटी-=मिट्टी के पंडे =यल जल्दी-जल के लिए। ताप उस दशा में । .ड़ = बुराईं। निर्धा कत है । राउr=गरवां, भारी । बहरा =तिरिक्त । साधु ==उसने । व क ==त घोड़े। वैड . .. मांfह कुछ पाठांतर के साथ मीरांदाई के पद-स ग्रहों में भी खाली है (दे॰ 'भोहां बाई की ५दावलीहिट सा सम्मेलनप्रयाग, पद ७४, पृष्ठ ३७) । वसं – बरस जय। उमह-उगपर =याल । शेख फरीद शेख फरीद का एक अन्य नाम ‘शाह ब्रह्म' था और वे अपने पूर्वज बाबा फ़रोद की प्रसिद्धि के कारण, फ़रीद सानी’ भी कहलात थे । मेकालिफ़ साहब ने उनकी मृत्यु का समय, ‘खोलासातृत्तवारी के आधार पर २१वीं रज्जव हिजरी सन् ९६० अर्थात् सं- १६०९ दिया है । यह भी कहा गया है कि उस काल तक वे अपनी गद्दी पर ४० वर्षों तक बैठ चुके थे । उनके शिष्यों में से शेख सलीम चिश्ती वहत प्रसिद्ध है । लकलिन साइब के अनुसार उनका जन्म, दीपालपुर के न क :