पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२७५

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२६२ संकाय रहने वाले को 1 बंधु है बंध हुआ है : कमाइ =साधन व अभ्यास करो। नाममहन्ष (५) तिहो गुपो त्रिभवण विमापिछ, भाई गुर मुस्खि झूले बुझाई। रास नामि लग छुटि, भाई पूछहू गियानीय जाइ से १। मनरे गूण ओडि चउथे विलु लइ । हरि जीड तेरे मनि बसे भाई, सदा हरि का गुणगाइ ।रहाड। नामे से सभि गजे , नाइ वितरि रि जाह। अगिआनो जरातू अंधु है भाई, सूते गए मुहाइ ।२। गुरखि जारों से अब !ई, संवऊढ पारि उतार। जगसह लाह्य हरिना हे , हिरद रखिए उरबार।३ ॥ एर सरणाई अरे , राम नासि लिव लाई। नानक नाउ बेड़ा नाड उठलड़ा भाई, लग पारि जन पाह ४३। चड=चौथे पदपरमात्मा में । मुहइ=त, बेसुध हो जाता है । सुलहड़==, खने के लिए आद्वितीय (६) पतु किंछ तोलिया जाइ। द्जा होई त सोझो पाते । लिसते दुजा नाहो कोइ। तिसो कीमति फिक् होइ ।१। गुर परसादि बसे मनि अनइ। ताको जाँ दुविधा जाढ़ ।रहा। प्रापि सस , कसवटी लाए। आपे परखे अपि चलाए ॥ अाये तले पूरी होई। आप जरारें एको सइ 137 साइना का रूपुसम हिंसते होइ। जिसनो मेले लु नियमल होझ ॥ जिसनोलाए लगे तिरु ।स सचू दिखाले तां सचि समाइ ।३। अ५ लिव बाढ़ है आप । अपि बुझाए जायें जायें ।।३। अमे सतिगुरु बद्ध है आये । नानक प्राखि रु पाए आये १४हैं। अतुलु=अतुलनीय 1 सोझी पाइ=सामने रखा जा सके। कि= कितनी। जिज तनो=जिसमें। दिखाने =जान लेने पर। लिय=धालु पर