पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२९९

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संतकाय

छिम छिम सहि अनोरथ यू एं, दिन बिन होइ अदा । दादू सोई बेषता , कलि अजरावर कंदा।४। कामधेनगायरूपिणी कामना को अपने वश में कर रखो। धारि= चाराउसके भोजन की वस्तु : नांघी ==कों, डालो। प्रार्ग . . .मांषो उसे खाने को न दो विषयों से दूर रखो। पोखेत ==पोष-पालन करने पर। भले अच्छी भली रहती है । = हुबली, क्षीण। मल्यां=छोड़ देने पर । घाटा—हानिकारक विषयादि से । सहकें.. . समाई-=सहज के साथ बंध जाने पर वह बंधन-मुक्त हो उसमें लोन हो जाती है, उसे अन्य कोई आधार नहीं रह जाता। छिन छिम...कंदरजिस्ले इस प्रकार किया और उसे रोक रखा उसकी अभीष्ट सिद्धि हो गई और उसे इस जीवन में ही अबिसाक्षी सलतरव की अनुभूति हो गई। व्यापक ब्र (४) निकटेि निरंजन चिह, छिन टूरि न जाई, बहरि भीतरि नकसर, सब रह्या समाई है।टक।। सतगुर भेद लाइथातब पूरा पाया। नेल नहीं निर॰ संदा, घदि सह प्रथा 1१। सौं परचा गया, पूरी सत जागी। जब जांति जीवनि मिल्याजैसे बड़भागते।२॥ रोम रोम में रमि रहा, सो जीवनि मेरा जीब पीव न्यारा सहीं, सब संगि बसेरा ।३। सुंदर सो सह रहेघंटि अंतरजामी। बालू सोई द चिह, सा संगि स्वामी ॥४। छिन क्षण भर के लिए भी। जांनि=जान करअनुभव प्राप्त कर के 1 सांॉटसभी । पुक्ति (५) निकट निरंजन लागि रहे, तब हम जीवत मुक्त भये ॥टेक।।