पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३०३

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२६० सतकाय सतगुर कीया फेरि करि, सन का औरे रूप । दादू पंचाँ पलटि करि, कैसे भये अनूप ।२!। आमबोध बंझ कर बेटा, गुर मुषि उपजे आइ । दादू पंगुल पंच बिन, जहां राम तहां जाइ ।३। साचा समरथ पर मल्या, तिन तत दिया बताइ । दाल मट महाबलो, घटि वृत मथि करि याइ ॥४१। बाहिकरिप्रयोग कर हे ।* =वंध्या स्त्री, भक्ति। पंचविन --= पांचों विषयों से न्यारा रह कर । मोट सहाबली =हृष्टपुष्ट हो गया। घटि .. थाइ=अपने भीतर ही ब्रह्मानंद रूपी धृत खा लिया। . बाढ़ जिह मत साधू घरे, सो मत लीया सोध। सन से माग भूल गईंयह सतगुर का परमोध १५। बालू नैन न देखे नैन, अंतर भी कुछ नांईि । सतगुर बर्मन करि बिंया, अरस परम मिलि मोहि ६। दादू पंच ये परमोघिले, इन हीक उपदेस । यह मन अपणा हाथि करतरै चेला सब देस ७ दादू चम्बक देषि करि, लोहा लारी प्राइ। यौं सन गुण इंद्री एक सों, दादू लीज लाइ ५८। मनका आासण जे जिब जाएंतो बैर ठौर सब सके। पंचने प्राणि एक धरि राधेतब अगम निगम सब बू te। कहें लर्ष सो मानवो, सैन लर्ष सो साथ । मनको लर्ष सु देवता, दादू अगम अगाध ५१०। परमोध प्रबोधज्ञान) मोधिले=समझाबुझाकर संयत कर ल। धम्बकर चुम्बक। एक स=परमात्मा के साथ । न-स्मरण बालू नाका गांव है, हरि हिरद न बिसतारि ।