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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३२६

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मध्ययुग (पूवर्ड) ३१३ , कै भू ल्यो रे में भेद न ज्ाष्यो, ताहर भगति न साथी रे । हूँ मिलिबातें रूडो थो, म्हारो मन म मिल्य अपराधी रे ।२३ समरथ में सरणें छायो, ढूं म्हारी पति राषी रे । बना सो नो निरबहियेमैं तुझे ऊपर नयी रे !1३है। अंगुणियो =अवसूपों को ' थाहरो=रा। थाई =लेस ही डहकायो थो-बहकता बा मारा-मारा फिरता रहा। रूडो=अच्छा, भल्ला । निरबहिये =निभा दीजिए। साखी हूं है प पतंग नै, तो शेषनां बिरद लजाइ है। दीपक महें जोति , तो घणां मिलेंगर आइ हैहै। भरघा न छूटे चिणग न छूई, जरण कहिये ताहि ! बषना समाई तिहि में, सो बोलि विधे नाह 1२५। आसद्धि पांणी , अठसद्धि तोरथ हाई। कटु वषन मन स्वच्छ को, अजों कलाधि न जाइ है३है? जिह बरियां यह सब हुवा, सो हल किया विचार है। बषनां बरियां खुशी की, करता सिरजनहार ।५४। प्रणदीछे छोर्चा कई रे, मो सन बारबार । ऊझल फूटा क्यार ज्यू, म्हारै नैण न घंडे धार ५है। रिद यश। घणां अनेक, बहुत से । चिणग न छूटे =घड़े की कोई छोटी सी कंकरी न निकल जाब और छिद्र हो जाय । जरण पचाना, आत्मसात कर लेना। समाई==गहराई वा गंभीरता। चिपूर्ल=बिगड़े वा उसे चप्ट कर दे। अठसठि-अड़सठ (प्रसिद्ध है कि प्रधान तीर्थों की संख्या अड़सठ है )कौषि – दुर्गा, मछलीपन जिह ..हुवा==सडिट का आरंभे होते समय। सो... विचार =मैंने विचारपूर्वक निश्चय किया है। अद- दोठो = बिना देखे। औोर्ल =स्मरणयाद । उभल =भरपूर से अधिक पानी के कारण । नै. . . भार==ांसूत्रों की झड़ी नहीं टूटती।